पीड़ाओं से व्याकुल
महंगाई और बेरोज़गारी के
दंश से आम आदमी त्रस्त
पर सियासत विहंस रही है
सत्ता मद में होकर मस्त
जिन संस्थाओं को बनाया गया
जनकल्याण के लिए जिम्मेदार
वो ही आज मग्न हो बजा रहे हैं
निजीकरण की धुनें सतत बेशुमार
पूंजी और संपत्ति का प्रवाह हाथ
में आता देख निजी क्षेत्र प्रफुल्ल
उसे नजर आ नहीं रहा जनता का
चेहरा जो पीड़ाओं से है व्याकुल
लोकतंत्र के प्रति अविश्वास का
भाव जो जन मन में गया समा
तब बहुत कोशिशों के बाद भी न
संभलेगी कारकुनों से यह फिजा
तेरी और मेरी के फेर में गाफिल
हैं आज जो राजनीतिक तमाम
इतिहास में खोजने पर भी नहीं
मिलेंगे कहीं उनके नाम निशान