पीड़ाएं सही जाती हैं..
पीड़ाएं सही जाती हैं..
पीड़ा की कहानियां कही जाती हैं जिनके मुख से ,
परे होते हैं उसके दुख से..
भूख की पीड़ा ,भूख की नहीं, जीवन की है..
इसे लिखने से पहले भोगनी चाहिए मृत्यु!
जीवन से झेंपती है कातर आंखे,
पकड़ते हुए रोटी को ,कांप जाते है हाथ।
मुख तक निवाला ले जाते हुए,झुक जाती हैं नजरे,
की जबकि एक भी बच्चा बिलख रहा है भूख से,
इसी दुनिया के किसी कोने में,और हम मजबूर हैं मूक दर्शक होने में..
©प्रिया