पिरितिया के आह
जइसे बरसे बदरिया अँखिया बरसेला हो
तऽ काहे पागल मनवा बुन ला तरसेला हो
ना जाने कवना राहे भटक गइल उऽ नैना
जे नयनन में पिरितिया के गाँव बसेला हो
बुझाइल कि गइली हेरा हमहीं एह भीड़ मे
महफिल सजलबा दिल ना तबो हसेला हो
कतनो जतन करी हम, कतनो करी गोहार
कतनो गाइला गजल हम ना मन पड़ेला हो
रोग सनेहिया के केहू अईसन धरा के गइल
रही रही देहिया बिरह से किशोर जड़ेला हो।
~ सोनु किशोर
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