पिया रे पिया रे
डॉ अरूण कुमार शास्त्री *एक अबोध बालक *अरुण अतृप्त
गली पी की तुझको
मुबारक हो सखी
रूह की तस्कीन ,
खुशी दे इमदाद की
हिचकियाँ क्यों आएँ
उनकी याद की जानम
तेरे पी खुद ब खुद तेरे
रूबरू आ झप्पियाँ दें
प्यार की जानम
दुआएं दे रहा जमाना,
झोलियाँ भर भर
खुशी का माहौल है
कहकशाँ को बहरहाल
अब तो सकूँ आये
रुत है तस्कीन की
बेसुरे से राग अब तो
गाना छोड़ दे जानम
रोनी सूरत पर ख़ुदाया
रौशनी आये प्यार की
मुफलिसी के दिन तिरे
हैं फिर गए कुछ तो यकीन कर
रौनकें आई है लेकर फिजायें ऐतबार कर
छोड़कर हाले ग़मी श्रृंगार कर
दे रहा आवाज है मौसम सुहाना
मंजिलें खुद बन गई तेरा बहाना मान ले
गली पी की तुझको
मुबारक हो सखी
रूह की तस्कीन
खुशी दे इमदाद की
वजू कर विस्मिल्लाह कर
नमाज़ कर रोजे के बाद
खुदा को याद कर
बेकरारी को अपनी
अब तो कसम से बिदा कर
मुफलिसी के दिन तिरे
हैं फिर गए , कुछ तो यकीन कर
रौनकें आई है लेकर
फिजायें ऐतबार कर
छोड़कर हाले ग़मी
श्रृंगार कर