पितृ दिवस
बोले यक्ष धर्म राज से पञ्च प्रश्न मुझे करना , तब ही तुम आगे आकर सर से जल भरना
एक प्रश्न बड़ा घर था आकाश से बड़ा कौन , याद है उत्तर पिता से विशाल और फिर कौन ‘
एक दिन पितृ दिवस मनाना मेरी तो पहचान नहीं ,
नित्य प्रातः ही वन्दन के संग याद मुझे सम्मान वही |
हाँ कुछ यादे बहुत ही बचपन की प्यारी है
अनुशासन की न्यारी वो क्यारीं हैं उनको हम याद जब भी करते हैं
पापा कि डांट में छिपे ज्ञान को बहुत मिस करते हैं
याद आता है पापा के आते ही टू इन वन पर केसेट गायब कर आकाश वाणी
और चुपचाप लेकर आना गड़वी एमन ठंडा पानी
अक्सर जब बाहर से आना और थका हुआ चेहरा, लेकिन मुसकुराना
जो भी ऑफिस में जो भी खाना घ भी वही लेकर आना
और अगर रात देर हो गई तो सोते हुए को जगाना रबड़ी खिलाना
एक दिन आपके लिए असंभव न तो ये पर्याप्त यही न ही उपयुक्त
तबही तो घर टूट रहे हैं बेटे पिता छूट रहे हैं
अरे हमारी संस्कृति कहती है
प्रातः काल उठकर रघुनाथा , मात पिता गुरु नावहीं माथा
आकाश से विशाल पिता , हिमालय से मजबूत पिता एक दिन में मत समेटो
प्लीज एक दिन में मत समेटो