Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Nov 2021 · 3 min read

‘पितृ अमावस्या’

‘पितृ अमावस्या’
म्याऊँ-म्याऊँ की कातर ध्वनि ने दिवाकर की तंन्द्रा को भंग कर दिया था। वह पचच्चीस-तीस बरस पीछे की दुनिया में खोया हुआ था। बीता हुआ एक-एक पल उसकी आँखों के सामने चल-चित्र सा नजर आ रहा था । उसे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे वो तीस साल पुरानी जिन्दगी में जी रहा हो।
पढ़ाई पूरी करने के बाद वो नौकरी की तलाश में शहर क्या गया कि वहीं का होकर रह गया था।
माता-पिता छोटे भाई के साथ गाँव में ही रहते थे। एक साल पहले ही उसके पिता का स्वर्गवास हुआ था।
दिवाकर अपने पिता की बरसी करने के लिए गाँव आया हुआ था। दोनों भाई पिता की बरसी खूब धूम-धाम से करना चाहते थे। 51 ब्राह्मणों को भोज का निमंत्रण के साथ-साथ पूरा गाँव भी आमंत्रित था।
पाँच दिन बाद पिता की बरसी थी। उसके मन में अचानक विचार आया कि क्यों न इस बार गाँव में हर परिवार से मिल लिया जाए। बस वो हर घर में जाकर सबसे मिलता- जुलता और हाल-चाल पूछता। कुछ लोग तो स्वर्ग सिधार गए थे। जिनके सामने वह पला-बढ़ा और खेला-कूदा था। कुछ काफी उम्र के हो गए थे। उनसे मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा था। कुछ दोस्त भी दूर-दूर चले गए थे ।एक दो दोस्त वहीं गाँव में खेती बाड़ी करते थे।
एक दिन दिवाकर पुरानी यादों को समेटे हुए घर की ओर चला जा रहा था कि अचानक उसकी नज़र एक पुरानी खंडहर सी झोंपड़ी पर पड़ी।वह कुछ देर वहीं ठिठक गया; अगले पल कुछ सोचते हुए वह तेज -तेज कदमों से चलता हुआ अपने घर की तरफ निकल गया।वह सीधा किचन में गया और एक कटोरी आटा निकाल कर देशी घी में उसका हलवा बना दिया। उसने एक दोना लिया और उसमें हलवा भरकर घर से निकल पड़ा।
अंधेरा होने लगा था रात्रि के सात बज रहे थे, रात भी अंधेरी थी और ऊपर से पितृविसर्जन अमावस्या। दिवाकर तेज चाल से चलता हुआ उस खंडहर सी झोंपड़ी के पास रुक गया। जिसके टूटे फूटे दरवाजे पर जंग लगी सांकल अभी भी कुंडे से लटक रही थी।
झोपड़ी की पीछेवाली कच्ची दीवार पर एक एक खुली खिड़की थी।
दिवाकर ने दोना खिड़की से अंदर सरका दिया था। तभी अचानक एक हवा का झोका आया और दोना अंदर जा गिरा। जैसे दिवाकर की भेंट स्वीकार कर ली गई हो।
दिवाकर कर को अपने बचपन की पुरानी बातें याद आने लगीं। कैसे सब बच्चे वीरा ताई को इसी खिड़की से रात को आकर सिरकटे भूत के नामसे डराया करते थे।
और दोपहर को उसके आंगन में लगे जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर लड़कियाँ गिट्टे खेलती थी और लड़के मिट्टी में गड्ढे बना-बना कर कंचे खेला करते थे। खूब शोरगुल मचाने पर ताई सब को अपने अपने घर जाने को कहती थी,पर किसी पर कोई असर कहाँ होता था! ताई अकेली जो रहती थी। हम बच्चे ही ताई का छोटा-मोटा काम भी कर दिया करते थे; खासकर रसोई का छुट-पुट सामान लाना, चूल्हे में फूँक मारना , कुंँए से पानी भर लाना आदि। कभी-कभी ताई आटे का देशी घी में बना हलवा भी बच्चों को खिलाती थी। उन्हे आटे का देशी घी में बना हलवा बहुत पसंद था। सभी वीरा ताई से घुल-मिल गए थे। दिवाकर ने सोचा न जाने गाँव फिर कब आना होगा। क्यों न ताई को भी श्रद्धांजलि देता जाऊँ।
और न जाने क्या-क्या सोच रहा था दिवाकर ?तभी बिल्ली की आवाज उसे वर्तमान में ले आई थी, जैसे वीरा ताई ही उसे साक्षात आशीष दे रही थी ।

मौलिक एवं स्वरचित
लेखिका-Gnp
©®

2 Likes · 378 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

पंचायती राज दिवस
पंचायती राज दिवस
Bodhisatva kastooriya
*देह का दबाव*
*देह का दबाव*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
सोना बन..., रे आलू..!
सोना बन..., रे आलू..!
पंकज परिंदा
पुरानी पेंशन पर सवाल
पुरानी पेंशन पर सवाल
अवध किशोर 'अवधू'
"नायक"
Dr. Kishan tandon kranti
-कलयुग ऐसा आ गया भाई -भाई को खा गया -
-कलयुग ऐसा आ गया भाई -भाई को खा गया -
bharat gehlot
नौ देवी वंदना घनाक्षरी छंद
नौ देवी वंदना घनाक्षरी छंद
guru saxena
The Sky Longed For The Earth, So The Clouds Set Themselves Free.
The Sky Longed For The Earth, So The Clouds Set Themselves Free.
Manisha Manjari
आडम्बर के दौर में,
आडम्बर के दौर में,
sushil sarna
न तो कोई अपने मौत को दासी बना सकता है और न ही आत्मा को, जीवन
न तो कोई अपने मौत को दासी बना सकता है और न ही आत्मा को, जीवन
Rj Anand Prajapati
T
T
*प्रणय*
बिन बोले सुन पाता कौन?
बिन बोले सुन पाता कौन?
AJAY AMITABH SUMAN
यही है हमारा प्यारा राजनांदगांव...
यही है हमारा प्यारा राजनांदगांव...
TAMANNA BILASPURI
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
रोज गमों के प्याले पिलाने लगी ये जिंदगी लगता है अब गहरी नींद
रोज गमों के प्याले पिलाने लगी ये जिंदगी लगता है अब गहरी नींद
कृष्णकांत गुर्जर
कफन
कफन
Mukund Patil
माना सब कुछ
माना सब कुछ
पूर्वार्थ
एकांत में रहता हूँ बेशक
एकांत में रहता हूँ बेशक
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
मायाजाल
मायाजाल
Sunil Maheshwari
ज़िंदगी के मर्म
ज़िंदगी के मर्म
Shyam Sundar Subramanian
तेरी आदत में
तेरी आदत में
Dr fauzia Naseem shad
तमाशा
तमाशा
D.N. Jha
फिर फिर गलत होने का
फिर फिर गलत होने का
Chitra Bisht
दिल में कोई कसक-सी
दिल में कोई कसक-सी
Dr. Sunita Singh
वर्षों पहले लिखी चार पंक्तियां
वर्षों पहले लिखी चार पंक्तियां
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
आँखों से बरसा करता है, रोज हमारे सावन
आँखों से बरसा करता है, रोज हमारे सावन
Dr Archana Gupta
एतबार
एतबार
Davina Amar Thakral
कठिन काम करने का भय हक़ीक़त से भी ज़्यादा भारी होता है,
कठिन काम करने का भय हक़ीक़त से भी ज़्यादा भारी होता है,
Ajit Kumar "Karn"
*भरत चले प्रभु राम मनाने (कुछ चौपाइयॉं)*
*भरत चले प्रभु राम मनाने (कुछ चौपाइयॉं)*
Ravi Prakash
विश्व सिंधु की अविरल लहरों पर
विश्व सिंधु की अविरल लहरों पर
Neelam Sharma
Loading...