‘पितृपक्ष’
‘पितृपक्ष’
देता हमको अवसर पितृपक्ष,
श्रद्धा से स्मरण करने का।
जिसने जन्म दिया है हमको,
उसके ऋण को भरने का।
मानव देह जो पाई है हमने,
है पालन-पोषण तुमने किया।
दुनिया में जीने की राह दिखाई,
सुनीति-पुनीत संस्कार दिया।
भूल गए थे कर्तव्य पथ अपना,
पूरा न किया था उनका सपना।
रह गए ऋणी उनके हम जीते जी,
तर्पण कर पितृपक्ष में भर देना।
गौ काग श्वान की तृप्ति से,
वो सदा ही तृप्त हो जाते हैं।
वो लेकर जाते कब कुछ हैं,
हमें देकर ही कुछ जाते हैं।
श्रद्धा से जो करता है स्मरण,
उसके भंडार भरे ही रहते हैं।
संतति का ऋण हरने ही वो,
इस धरती पर आते रहते हैं।
हे पितृ देव हम करते अर्पण,
जौ-तिल की अंजलि जल भरकर,
करना तुम रक्षा सदा हमारी,
हर संकट में राह दिखाना आकर।