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2 Oct 2023 · 2 min read

पितृपक्ष में फिर

व्यंग्य
पितृपक्ष में फिर
********
लीजिए फिर आ गया पितृपक्ष
हमारे आपके लिए अपने पूर्वजों के प्रति
श्रद्धा भाव का नाटक दिखाने के लिए
सिर मुड़वाते तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान करते हुए
सगर्व फोटो सोशल मीडिया पर प्रसारित कराने के लिए।
बड़ी बेशर्मी से अपने पूर्वजों के आगे
नतमस्तक होकर शीश झुकाने ,
उनकी आत्मा की कथित शान्ति के लिए
आडंबर कर इतराने के लिए।
अच्छा है कीजिए करना भी चाहिए
कम से जीते जो न मान सम्मान किया
न ही अपना धर्म कर्म किया।
वो सब इन पंद्रह दिनों में जरुर कर लीजिए,
जीते जी आखिर जिन पूर्वजों को आपने
भरपूर उपेक्षित अपमानित किया,
बिना खाना पानी दवाई के जीते जी
बिना मारे ही मार दिया या घर से निकाल दिया
ये सब नहीं कर पाये तो
उन्हें अकेला मरने के लिए ही छोड़ दिया।
फिर उनके मरने के बाद ही आये
और खूब घड़ियाली आंसू बहाये
उनसे मिली आजादी का
मन ही मन खूब जश्न मनाए,
तेरह दिन मजबूरी में किसी तरह
दिखावे में गमगीन रह पाए
ब्रह्मभोज में अपने नाते रिश्तेदारों
अड़ोसियों पड़ोसियों को विविध व्यंजन खिलाए,
सबसे लायकदार होने का तमगा चस्पाकर
हाथ झाड़ कर बड़ा संतोष पाए।
आइए! पितृपक्ष में एक बार फिर हम
मन मारकर ही दिखावे के लिए ही सही
दिखावे की औपचारिकता तो निभाएं।
किसी तरह जो पुरखे खुद को संभाल पाये हैं
उन्हें फिर से कांटे चुभाएं और गुदगुदाएं
उनकी आत्मा भी चैन से न रहने पाए
पितृपक्ष में एक बार फिर अपनी लायकी का सबूत
दुनिया को दिखाएं और पुरखों को फिर से रुलाएं।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

1 Like · 127 Views
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