पिता
पिता
बन कर हम साया, मुझे चलना सिखाया,
ईश सम पिता मेरे, वंदन स्वीकारिए।
पढ़ लिख पाऊँ ज्ञान, बनूँ नेक बढ़े शान,
बन कर मंदाकिनी, औगुण पखारिए।
मार कर स्व इच्छाएं, मुझे हर सुख दिया,
प्यार वाली थपकी से, नींद से जगाइए।
रहनुमा बन कर, हिफाजत की है मेरी,
बचपन की लोरियाँ, फिर से सुनाइए।
साया जब उठ गया, रूठ गया भाग्य मेरा,
दिव्य रूप धार कर, पुनः चले आइए।
विनोद वर्मा दुर्गेश,
तोशाम, जिला भिवानी,
हरियाणा – 127040
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