पिता
पिता तुम वृक्ष छायादार
हमको बचाकर खुद सहते रहे मार
वाहें उनकी
झूला झूलती थी
सूंदर सुंदर सपने दिखाती थीं
बीच समुंदर खड़े
लगाते रहे हमारी नैय्या पार
पिता तुम वृक्ष छायादार
मैं अकिंचन भावना भर
क्या करूँ अर्पण
अंजुली में नीर लेकर
प्रतिवर्ष करूँ तर्पण
झुक न पाया कभी तुम्हारा शीश
सिर पर रखकर देते सदा आशीष
इन्द्र शर्मा शाहपुर जाट नई दिल्ली 110048