‘पिता’
पिता नहीं तो हम नहीं,
उनसे मिला शरीर।
सुख चुन-चुन संतान दे,
सहे स्वयं वो पीर।
सहे स्वयं वो पीर,
प्रसन्नता से भार सहे।
हर ले दुख संतान,
बोल न मुख से कुछ कहे।
समझ श्रेष्ठ दो मान,
समय साथ उसके बिता।
लगे जगत शून्य सम,
छत्र छाँव जो न हो पिता।
बच्चों की पिता ढाल है,
झेले जो हर वार।
हाथ नहीं सर तात का ,
कुछ भी ना संसार।
कुछ भी ना संसार,
मुख दमकता होने से।
मनचाही वस्तु मिले,
पितु के समक्ष रोने से।
बालक हों नादान,
सोच बढ़ाए कच्चों की।
भटके बच्चे जो पथ,
भूल सुधारे बच्चों की।
गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड