पिता
उस शख्स पर क्या लिखूं?
जिसके लिए कम पड़ जाते हैं कलम कागज भी
खुदा नहीं वह पर खुदा से कम भी नहीं
पिता के नाम से जिसे जग जानता है
अपनी मेहनत से मैंने उन्हें हमारी तकदीर लिखते देखा है
डांट कर हमें अकेले में तड़पते देखा है
कड़वे बोल कर चासनी सी मीठास जिंदगी में घोलते देखा ह
नींद में हो जब हम तो हमें प्यार से निहारते देखा है
मां से अकेले में हमारा हाल पूछते देखा है
जब चोट लगे हमें तो दर्द से तड़पते देखा है
मजबूत बनाने को हमें अपनी मोहब्बत छुपाते देखा है
मजबूत है वह पत्थर की तरह पर
फूल से भी कोमल दिल में हमें वह रखते हैं
एक-एक पैसा हमारा भविष्य के लिए जोड़ते देखा है
हमारे अच्छे काम पर सामने मुस्कुरा कर पीठ पीछे तारीफें करते देखा है
जरा आने में देर हो जाए तो उन्हें डरते देखा है
दिखाते नहीं फिर भी हमें खोने का डर आंखों में छुपाते देखा है
हां मैंने पिता को फिक्र करते देखा है
सब से आंसू छुपा कर मैंने अकेले में उन्हें आंसू बहाते देखा है
हां मैंने पिता को बिना जताए बच्चों से अंधी मोहब्बत करते देखा है
Komal Swami”दिल की आवाज”