पिता
एक पिता अपनी औलाद के लिए जिन्दगी भर कितना
संघर्ष करता है कि वो दुनिया की सारी खुशिया उसे दे सके| वो अपनी जरूरतों और खुशियों को छोड कर वो अपनी औलाद की खुशियो के बारे मे शोचता है| लेकिन औलाद अपने पिता के बारे मे कितना शोचती है| ये हर कोई जानता है| क्योकि हर कोई किसी ना किसी का पुत्र जरूर होता है| ये अहसास हमे पिता बनने के बाद होता है| मैं चाहता हूं वो सारी खुशिया मैं अपने पिता को दू| लेकिन मैं चाहकर भी उनकी बराबरी नही कर पाता हूं | श्याद ही वो खुशिया मे उन्हे दे पाऊ| जो उन्होने हमे दी|