पिता:(त्रिभंगी छंद)
हे जगत विनायक, भाग्य विधायक, गृह पालक तू, सन्यासी।
खुशियों के दाता, सुहाग माता,जग पालक हे, अधिशासी ।
हे दर्द विनाशक, शांति उपासक, रहते हरदम, श्रमवासी।
तू गम ना पाले, बड़े निराले, दर्शन अखियाँ, हैं प्यासी।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.