“पिता”
बहुत कोशिश किए
की लिख पाएं…
लेकिन कुछ अधूरा सा है
शब्द तो है
फिर भी कुछ कोरा सा है।
जितनी जटिलता इनके कर्मो में है
बता पाना मुश्किल है
इनके अहसानों को चुका पना
मुश्किल है
ममता की एक क्रूर परिभाषा है
“पिता”
ज़िन्दगी की संपूर्ण भाषा है।
दुनिया की भीड़ में
एक अनोखी आस है
जिन्हें हर पल हमारी खुशियों की प्यास है।
ज़ख्म लेकर भी मुस्कुराते देखा है
हर पल उन्हें,सबको हसाते देखा है
मेरी शायरी में इतनी मशक्कत नहीं
जो बयां कर दें इनके कर्मो की साख को
बस अदा कर सकते है हरपल
इनके लफ्जो के फरमान को।