“पिता”
मेरी एक चीख से उसका हृदय चित्कार उठता है।
मेरे आँख से पढकर वो हर एक गम भांप लेता है।
यूं तो आदत में है मेरी हरघडी़ मुस्कुराने की।
हँसी गुम हो पल को तो वो दुनियां नाप लेता है।
मेरी हर हार को भी जीत करदे है वो हिम्मत वो।
मेरी हो मात कोई तो भी वो शह की थाप देता है।
है मेरी खुशनसीबी कि दिया है मुझको ये जीवन।
कोई देता नहीं वह स्नेह जो एक बाप देता है।
शशि “मंजुलाहृदय”