पिता
पिता रूप भगवान का, पिता तीर्थ का नाम।
चरण पिता के पूज ले, बन जाएंगे काम।।
“दीप” संगणक सम पिता, पिता ज्ञान विज्ञान।
पल भर में करते पिता, हर मुश्किल आसान।।
पिता पुत्र का भाग्य है, पिता पुत्र का कर्म।
“दीप” जगत में जानता, कोई-कोई मर्म।।
जग में दिखता ही नहीं, कोई पिता समान।
जो शोणित से सींचता, रिश्तों का उद्यान।।
पिता समर्पण की कथा, पिता प्रेम का गीत।
पिता काव्य पुरुषार्थ का, पिता हार की जीत।।
पिता पुरी, मथुरा, गया, वृंदावन, हरिद्वार।
पिता स्वर्ग की सीढ़ियाँँ, पिता मोक्ष का द्वार।।
पिता सुखों का स्रोत है, पिता दुखों का अंत।
भक्ति भाव से पूजिये, मिल जाएँ भगवंत।।
प्रदीप कुमार दीप
सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)