पिता
खुशियाँ उसकी ,
हद नही बे-हद है ।
औलाद की खुशी पर ,
वो कितना गदगद है ।
औलाद से अपनी ,
उसे इतना ही मतलब है ।
सोचता है वो बस यही ,
मेरे गुजरे कल से ,
आज इसका बेहतर है ।
खुशियाँ उसकी ,
हद नही बे-हद है ।
औलाद की खुशी पर ,
वो कितना गदगद है ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”..