पिता
मां है शीतल छाया तो पिता जीवन आधार हैं।
जब पग हो छौने छौने तो उंगलियों का आभार है
जब शब्द भटकते थे जिव्हा में तो उनके समझ का पारावर है।
नज़रे टेढ़ी होते ही सही गलत का ज्ञान मिला
पग पग पर पिता से जीवन का अभिमान मिला
जीवन के दुर्लभ राहों पर उनके आलिंगन से प्रफ्फुलित होता
मै छोटी -छोटी शिखरों को छूता , वो खुशीयो का अंबार बना देते
मैं कहता अब न हो पायेगा, वो कहते तू सब कर जायेगा
हिम्मत न हार, कदम बढ़ा तू सागर भी लांघ जायेगा
मैं कुढ़ता, चिढ़ता और बकवास समझता उनकी बातों को
वो समझ कर भी नासमझ बन जाते है, और फिर वही समझाते हैं
इसलिए पिता कहलाते है, जीवन में कई -कई रोल निभाते है
इसलिए पिता कहलाते हैं, इसलिए पिता कहलाते हैं