‘पिता’
पिता
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जो , जन का जन्मदाता है;
जो मन को , खूब भाता है;
प्यारा सा , जिससे नाता है;
वह ही ‘पिता’ कहलाता है।
जो,सदा जीना सिखाता है;
सांसारिक बात, बताता है;
घर-परिवार को, चलाता है;
वह ही, ‘पिता’ कहलाता है।
जो निज घर का , दाता है;
जो घर का , बड़ा ज्ञाता है;
पर घर हेतु , लुट जाता है;
वह ही ‘पिता’ कहलाता है।
जो, मुसीबत दूर भगाता है;
संतान को,इंसान बनाता है;
जिसके संग रहती ‘माता’ है;
वह ही, ‘पिता’ कहलाता है।
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स्वरचित सह मौलिक;
✍️……..पंकज कर्ण
…….कटिहार(बिहार)