पिता
संघर्षी पथ चलने वाले पिता पुरौधा होते हैं।
हर संकट से लड़ने वाले एकल योद्धा होते हैं।
उनके सपनों में संतानों की ही शोहरत होती है।
उनके मन में संतानें ही उनकी दौलत होती है।
क्षणिक क्रोध में आकर वो जब खूब पिटाई करते हैं।
तब एकाकीपन पाकर खुद भी रोया करते हैं।
उनके मन के भावों में तुम जब जब दिल से झांकोगे।
उनके सम्मुख ईश्वर को भी बहुत तुच्छता आँकोगे।
कलयुग के चितकारी रागों में मत पड़ना बेटा जी।
चाहे पापा डांट लगाए मुंह मत पड़ना बेटा जी।
दीपक झा “रुद्रा”