पिता
पिता दिवस का पीटते, चारों बेटे ढोल।
आए दिन तो कर रहे, समझ बोझ का तोल।।
नींव बिना सजते कहाँ,छत छज्जे कंगूर।
बिना पिता आशीष रहे, जीवन भर लंगूर।।
पिता आसरा माथ जब, होता सुत हैं धन्य।
सच्ची राह दिखा सके, और न कोई अन्य।।
सीधे मुंह क्या बात करे,करे नहीं है काज।
देख दिखावा कर रहे, पिता दिवस पर आज।।
सपने मन के पोषते,रहे अंत बेहाल।
हुई देह लाचार जब,नहीं पूछते हाल।।
संतोषी देवी
शाहपुरा जयपुर राजस्थान।