Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Jun 2022 · 1 min read

पिता

पिता ओ पिता
तुम याद बहुत आते हो
अब भी जब कलम पकड़ता हूं
कुछ करने आगे बढ़ता हूं
तब जैसे उंगली थाम मेरी
तुम सहसा संग आ जाते हो
ओ पिता तुम याद बहुत आते हो
जब भी कोई उलझन होती है
बिन कारण आंखें रोती हैं
तब जीवन का सार मेरे मानस आकर समझाते हो
ओ पिता तुम याद बहुत ही आते हो
जब मां को उलझन होती है
जब बहन कभी जिद करती है
तब आगे बढ़ कर थाम मुझे तुम हर रास्ता बतलाते हो
ओ पिता
ओ पिता
तुम याद हर कदम आते हो

8 Likes · 6 Comments · 518 Views

You may also like these posts

जब बेटा पिता पे सवाल उठाता हैं
जब बेटा पिता पे सवाल उठाता हैं
Nitu Sah
ओ! चॅंद्रयान
ओ! चॅंद्रयान
kavita verma
बेअसर
बेअसर
SHAMA PARVEEN
चौथापन
चौथापन
Sanjay ' शून्य'
है शिव ही शक्ति,शक्ति ही शिव है
है शिव ही शक्ति,शक्ति ही शिव है
sudhir kumar
#नवयुग
#नवयुग
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
घरवार लुटा है मेरा
घरवार लुटा है मेरा
Kumar lalit
3053.*पूर्णिका*
3053.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
#प्रसंगवश-
#प्रसंगवश-
*प्रणय*
Interest
Interest
Bidyadhar Mantry
लिख रहा हूं कहानी गलत बात है
लिख रहा हूं कहानी गलत बात है
कवि दीपक बवेजा
"लावा सी"
Dr. Kishan tandon kranti
आखिर कब तक
आखिर कब तक
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
परिणय प्रनय
परिणय प्रनय
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
अब चिंतित मन से  उबरना सीखिए।
अब चिंतित मन से उबरना सीखिए।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
सब बिकाऊ है
सब बिकाऊ है
Dr Mukesh 'Aseemit'
***किस दिल की दीवार पे…***
***किस दिल की दीवार पे…***
sushil sarna
कह मुकरी
कह मुकरी
Dr Archana Gupta
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
Keshav kishor Kumar
- रिश्तों को में तोड़ चला -
- रिश्तों को में तोड़ चला -
bharat gehlot
मुक्तक -
मुक्तक -
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
तुम से ज़ुदा हुए
तुम से ज़ुदा हुए
हिमांशु Kulshrestha
************ कृष्ण -लीला ***********
************ कृष्ण -लीला ***********
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
शोषण खुलकर हो रहा, ठेकेदार के अधीन।
शोषण खुलकर हो रहा, ठेकेदार के अधीन।
Anil chobisa
मैं कभी किसी के इश्क़ में गिरफ़्तार नहीं हो सकता
मैं कभी किसी के इश्क़ में गिरफ़्तार नहीं हो सकता
Manoj Mahato
🙏 गुरु चरणों की धूल🙏
🙏 गुरु चरणों की धूल🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
परिसर
परिसर
पूर्वार्थ
*गाली जब होती शुरू, बहस समझिए बंद (कुंडलिया)*
*गाली जब होती शुरू, बहस समझिए बंद (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
जंजालों की जिंदगी
जंजालों की जिंदगी
Suryakant Dwivedi
राह भी हैं खुली जाना चाहो अगर।
राह भी हैं खुली जाना चाहो अगर।
Abhishek Soni
Loading...