पिता
पिता ओ पिता
तुम याद बहुत आते हो
अब भी जब कलम पकड़ता हूं
कुछ करने आगे बढ़ता हूं
तब जैसे उंगली थाम मेरी
तुम सहसा संग आ जाते हो
ओ पिता तुम याद बहुत आते हो
जब भी कोई उलझन होती है
बिन कारण आंखें रोती हैं
तब जीवन का सार मेरे मानस आकर समझाते हो
ओ पिता तुम याद बहुत ही आते हो
जब मां को उलझन होती है
जब बहन कभी जिद करती है
तब आगे बढ़ कर थाम मुझे तुम हर रास्ता बतलाते हो
ओ पिता
ओ पिता
तुम याद हर कदम आते हो