पिता
मांगता रहा था तजुर्बा लोगों से,
भूल गया की घर में बैठा
वो शख्स भी तजुर्बे वाला है।
कभी फुरसत से बैठ पास उनके
क्या कभी उनके दर्द को भी समझा है?
ठोकर लगी तो याद आई उनकी
क्योंकि मुश्किलों से उभरना मैंने पिता से जाना है।
मांगता रहा था तजुर्बा लोगों से,
भूल गया की घर में बैठा
वो शख्स भी तजुर्बे वाला है।
कभी फुरसत से बैठ पास उनके
क्या कभी उनके दर्द को भी समझा है?
ठोकर लगी तो याद आई उनकी
क्योंकि मुश्किलों से उभरना मैंने पिता से जाना है।