पिता
ऐसा क्या कह देता हैं पिता ,
जब देखो तब बच्चे नाराज हो गए।
सूरज सी हैं जिंदगी तपना तो हैं।
खुरदरा पथ हैं जिंदगी चलना तो हैं,
आंधी झंझावत हैं जिंदगी लड़ना तो हैं।
मझदार भवँर हैं जिंदगी जुझना तो हैं।
नदी दरिया सागर हैं जिंदगी बहना तो हैं।
आसमान हैं जिंदगी हौसला भरना तो हैं।
गुम होता सहरा हैं जिंदगी खोजना तो हैं।
अनजानी हैं जिंदगी पहचान होना तो हैं।
रिश्तों की मिठास हैं जिंदगी घोलना तो हैं।
खुद से खुद की जूझ हैं जिंदगी देखना तो हैं।
हकीकत ही हैं जिंदगी धारना तो हैं।
सतरंज की चाल हैं जिंदगी खेलना तो हैं।
मखमली हैं जिंदगी सहज सोचना ही तो हैं।
बिना पाँख उड़ना हैं जिंदगी महज सपना ही तो हैं।
एक सच पाठ पढ़ाना पिता का बुरा होना ही तो हैं।
संतोषी देवी
शाहपुरा जयपुर राजस्थान।