पिता
पिता आकाश है,
बरगद की छाँव है।
पिता उम्मीद है,
खुशियों का गाँव है।
पिता आस है,
वो है तो……
सारी दुनिया पास है!
पिता होली है, दिवाली है,
उसीसे घर के गालों की लाली है,
पिता सुबह की कड़क चाय की प्याली है,
भले,वह अपनी ही ज़ेब की तरह खाली है!!
पिता आँखों की हँसी, होठों की मुस्कान है,
बच्चों पर उसकी फटी झोली कुर्बान है।
पिता ईंट है, मिट्टी है, गारा है, मसाला है
उसीसे घर शिवाला है।
पिता शिव है-
घर बचाने को खुद ही पी जाता विष का प्याला है!!!
कुमार अविनाश केसर
RKHS बड़कागाँव, मड़वन,
मुजफ्फरपुर, बिहार