पिता
पिता,
मेरे सिर की छत,
मन की सुरक्षित ढ़ाल हैं ।
उड़ान मेरे हौंसलों की,
अस्तित्व की पहचान हैं ।
मन में जो दृढ़ता भरे
मजबूत वो स्तम्भ हैं ।
मेरे प्रेरणा उद्गम वही
जीवन का वो आरम्भ हैं ।
आशाओं के सब द्वार हैं ।
ईश का उपहार हैं ।
है जहां मुझको सुलभ सब
वो मेरा संसार हैं ।
पिता का है संग जिस पथ
वहां निश्चित जीत है ।
काल भी रूख मोड़ लेता
हारती हर भीत है ।
हाथ जो सिर पर तुम्हारा
फिर कहो मैं क्या वरूं
आधिपत्य कर हर चाह पर
सौभाग्य की स्वामिनी बनूं ।
मौलिक स्वरचित कृति
सरस्वती बाजपेई
कानपुर नगर