पिता
पिता
पिता बनते ही,
फिर से जिम्मेदार हो जाता है,
बड़ी समझदारी से,
पाई पाई जमाता है.
बच्चे कहीं तरस ना जाएं,
और ज्यादा मेहनत करता है,
घर में बेहतर
सुविधा मुहैय्या करवाता है.
खुद धूप और गरमी में,
पसीना बहाता है.
दिन भर बाहर रहता है,
बच्चों से दूर हो जाता है,
थक ही इतना जाता है,
अपने मन की बात
समझा नही पाता है.
अपनी फिक्र छोड़ कर,
सबकी जिंदगी बनाता है,
जब बच्चे, जीवन में बस जाएं,
ईश्वर से धन्यवाद करता है.