पिता
पहचान, आन-बान व सम्मान पिता हैं
होठों पे थिरकती हुई मुस्कान पिता हैं
चन्दन की तरह पाक व गंगा सी विमलता
भगवान के भेजे हुए वरदान पिता हैं
अपनी न कोई फ़िक्र, न चिन्ता, न ज़रूरत
बच्चों के मगर वास्ते धनवान पिता हैं
मुश्किल हैं कभी, तो कभी आसान पिता हैं
अफ़साना ज़िन्दगी है तो उनवान पिता हैं
संता क्लाज बन के जो बच्चों के होंठ पर
क्रिसमस की रात बाँटते मुस्कान पिता हैं
रब माफ़ करे, एक ही मालिक है जगत का
धरती पे मगर दूसरे भगवान पिता हैं
आओ ‘असीम’ चल के दुआ मांग लें उनसे
जन्नत के रास्ते के निगहबान पिता हैं
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’
रोहुआ मछरगावां, कुशीनगर