पिता
पिता
पिता दिवस हम नहीं मनाते,
हम तो निस दिन शीश झुकाते,
देख कठिन संघर्ष पिता का,
मन ही मन हम तो इतराते,
बिखरे रिसते रिशतो को भी,
प्यार से सींच महकाया है ,
खुद पैदल चलकर पत्थरों पर,
हमें पुष्पों पर चलवाया है ,
मातृभाषा स प्रेम पिता का ,
आदर सत्कार सिखाया है,
नम आंखों में आंसू छुपा कर ,
जगत में जीना सिखाया है ,
खुशियों का संसार पिता है ,
तमहारी व्यवहार पिता है,
परिवार का स्तंभ पिता है,
आदि हैऔर अंत पिता है।।।
✍️©अरुणा डोगरा शर्मा
मोहाली।