पिता
पिता
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एक पिता
कितना दृढ़ लगता है
जीवन के
हर चुभने वाले मोड़ों पर भी
हँसते, मुस्कुराते
बच्चों के चेहरे में
जीवन की सारी खुशी
और आनंद ढूंढते हुए
हर दर्द को सहजता से झेल जाता है
अनवरत कार्य करता है
बच्चों की खातिर
घर लौटकर भी विश्राम नही करता
पूर्ण करता है बहुत सारे कार्य
अपने लैपटॉप पर
बच्चों के चेहरे की मुस्कान देखकर
भूल जाता है अपनी थकावट
नींद भी नहीं आती
अपनी तकलीफ,अपना दर्द
बाँट लेता है अपने कार्य से
अपनी निष्ठा से
हमें भान भी नहीं होने देता
अपनी पीड़ा का
दिन रात बच्चों की राहों में
सुख बिछाना चाहता है
हृदय में दुःखों को
दबाकर
मुस्कुराता है सबके सामने
कितना दृढ़ होता है
एक पिता।
जब तकलीफ बढ़ती है
तो रोता भी है एक पिता
हाँ नहाते वक्त
कुल्ला करते वक़्त
ताकि आँसू पानी के साथ
एकाकार हो जाए
कोई पिता की दृढ़ता पर
पिता के एक पुरुष होने पर
उंगली ना उठाए
इसी कारण चुपके से छिपकर
रो भी लेता है एक पिता
जमाने की नज़रों से बचकर,
पिता चिंतित रहता है
बच्चों के भविष्य को लेकर
हर पल
चिंता करता है
उनके सुख की
उनके दुःख की भी
हत्या कर देना चाहता है
उन दुःखों की
जो उनके बच्चों की राहों में
आता हो
फूल बिछा देना चाहता है
उनकी राहों में
उन्हें दर्द ना हो
वो दर्द तो बिल्कुल भी नहीं
जो उसने भोगा है
हाँ पिता ही तो है
जो ईश्वर से प्रतिपल
अपने बच्चों के दुःखों को
उसे दे देने की प्रार्थना करता है
पिता हाँ वही
जो अपने पाँवों के छाले की
परवाह किये बगैर बच्चों के
पाँवों को हल्की चोट लगने पर भी
सहलाता है,दुलारता है,फूंकता है
और खरीदता है नये जूते
अपने पाँवों से बहते खून
नज़र नही आते उसे
दौड़ता है उन्हीं पाँवों से
लाता है बच्चे के लिए
नये जूते।
पिता जो कुछ भी करता है
बस अपने बच्चों के लिए
पिता पिता है
पिता ही पिता है
पिता के पितृत्त्व पर
परमपिता का आशीष है
हे ईश्वर! सब पिता की
उम्र लंबी कर दो
किसी के सिर से
पिता का साया
ना उठे!
-अनिल कुमार मिश्र,राँची।