पिता ही है
जब तक पिता का हाथ सिर पर होता है
जिम्मेदारी से मन आजाद होता है
मन बेपरवाह मगन होता है
पिता साथ जब होता है
कोई डर नही
पिता तो पिता होता है
उनके बाद…..
जब जिम्मैदारी कि वजन होता है
तो पिता की कमी का भान होता है
खुद की ख्वाईशों को
भुला कर पिता
सबकी ख्वाईश
पूरी करता
है…आसान नही होता पिता बनना
बहुत कुछ सीखना था पिता से
मन फिर यहीकहता।
-सीमा गुप्ता