*पिता (सात दोहे )*
पिता (सात दोहे )
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( 1 )
जेठ दुपहरी में मिली ,ज्यों पेड़ों की छाँव
चढ़े पिता की गोद में , नन्हे – से दो पाँव
( 2 )
घर में खुशियाँ मिल गईं ,सबको सौ-सौ बार
नीवों में बैठा पिता , खुशियों का आधार
( 3 )
थका हुआ लेकर खड़ा ,घर का पूरा भार
कभी पिता ने पर नहीं ,चाहा कुछ आभार
( 4 )
बन पाया जो खुद नहीं ,गढ़ता उसका रूप
रंक पिता तो क्या हुआ ,बच्चे तो हों भूप
( 5 )
घर को गिरवीं रख रची , बच्चों की तकदीर
छिपी पिता में झाँकती ,ईश्वर की तस्वीर
( 6 )
घर में सब की चाहतें , सबके कुछ अरमान
पूरा करता है पिता ,ज्यों सोने की खान
( 7 )
जोड़ा जो कुछ कर दिया ,सब बच्चों के नाम
जाने यह गलती हुई ,या फिर अच्छा काम
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451