पिता वही कहलाता है
फादर्स डे पर मेरी एक स्वरचित कविता प्रत्येक पिता को समर्पित है
खुद ज़हर दर्द का पीकर,
बच्चों को शहद पिलाता है।
जो अपने लिए नहीं जीता,
बस वही पिता कहलाता है।।1।।
आंधी में कवच का रूप लिए,
हर बार वो सामने आता है।
यह घोर समर्पण देख तभी,
वह संकट भी टल जाता है।।2।।
चोट लगे जब बच्चों को,
तब दर्द पिता को होता है।
त्याग रातों की नींद स्वयं,
बच्चा तब चैन से सोता है।।3।।
एक पिता है जो जीवनभर,
संपत्ति तो बहुत कमाता है।
देता सबकुछ परिवार को है,
और फूला नहीं समता है।।4।।
है आशा उसकी इतनी सी,
बच्चों की काया कल्पित हो।
जैसे मैंने तुम्हें सींचा है,
वैसे ही तुम संकल्पित हो।।5।।
स्वरचित कविता
तरुण सिंह पवार
16/06/2019