पिता बिना संसार सूना
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जिसने भी- अपने पिता का आशीष पाया।
समझो! उसने- विधाता का आशीष पाया।।१।।
पिता ही- “पिता परमेश्वर” का प्रतिरूप है।
संतान के लिए- पिता ही ईश्वर का रूप है।।२।।
ईश्वर की कृपा! उसी संतान पर बरसती है।
जो संतान! अपने पिता की सेवा करती है।।३।।
जो संतान! अपने पिता का अनादर करें।
उस संतान पर कृपा दृष्टि- कैसे ईश्वर करें।।४।।
जो संतान! अपने पिता को अपमानित करें।
ऐसी संतान को भला- कौन सम्मानित करें।।५।।
माता ने संतान को नौ मास गर्भ में पाला है।
पिता ने श्रम कर अपनी संतान को पाला है।।६।।
संसार में संतान की पहचान! पिता होता है।
संतान से ही- नाम रौशन पिता का होता है।।७।।
माता का प्यार बच्चों को जन्म से मिलता है।
पिता का प्यार भी कोई कम नहीं मिलता है।।८।।
जिसने “पितृ-प्रेम” पाया- वो भाग्यशाली है।
पिता के बिना- यह जीवन खाली-खाली है।।९।।
जब-तक पिता है संसार में- अच्छा लगता है।
पिता के बिना- ये संसार सूना-सूना लगता है।।१०।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल=======
====*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*=========
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