पिता प्रेम
हस्तिनापुर लौटे पांडव, हुए विजयी वह आखिरकार
धर्मराज का तिलक था होना, गुंजी उनकी जय-जयकार
सभी पांडव अपने बड़ो का, आशीष लेने आये थे
सबने फिर माधव को देखा, वह संग अपने कुछ लाये थे
एक बड़ी वज्र की मूरत थी, उसकी चमक दूर से दिखती थी
और गौर से देखा सबने तो, कुछ भीम के जैसी दिखती थी
चकित थे पांडव आखिर केशव ये मूरत क्यों है लाये
इतने में बोले केशव, ‘चलो तातश्री से मिलके आये’
धृतराष्ट्र बैठे थे सिंघासन पे बोले, ‘तुमको विजय मुबारक हो
तुमने जीता मन है सबका, तुम सभी धर्म के कारक हो
एक बार गले लगा लूँ तुमको, फिर प्रस्थान करूँगा
और बहोत हुआ ये खून खराबा अब तुमसे न लडूंगा’
एक-एक करके बढ़ते पांडव, पाते उनका आशीष थे
नमन में अपने ज्येष्ठ पिता के, झुके सभी के शीश थे
आगे बढे जब भीम अचानक माधव ने उनको थाम लिया
वज्र की मूरत आगे बढ़ा दी, उन्होंने अक्ल का ये काम किया
ज्यों ही आलिंगन में उनके, वह वज्र की मूरत आयी
धृतराष्ट्र ने उसको कसके जकड़ा, अपनी शक्ति दिखाई
चटक गयी वह एक क्षण में, जो बनी वज्र की मूरत थी
अगले क्षण ही टूट गयी वो, जिसपे छपी भीम की सूरत थी
पांडव खड़े सब भय में थे, सन्नाटा सा छाया था
भीम को गले लगाते ही, धृतराष्ट्र को क्रोध भयानक आया था
भीम की सूरत पड़ी-पड़ी, उस वज्र मूरत से देख रही
क्या होता जो भीम ही होते, ये प्रश्न सभी पर फ़ेंक रही
तोड़ दिया उस मूरत को, फिर कलेजा धृतराष्ट्र का डोला
रोने लगा वह फूंट-फूंट के, और आखिर में ये बोला
‘क्षमा करो बच्चों मुझे, मैंने ये काम किया है
तुम्हरे एक भाई को मैंने, तुमसे छीन लिया है’
सोचा न था स्वप्न में भी, की मैं ऐसा काम करूँगा
सोचा यही था राज्य सौंप के, अब आराम करूँगा
पर जब गले लगाया भीम को तब, क्रोध अजब सा जागा
मन हुआ की चीर दूँ इसको, और करदूँ इसको आधा !
न रोक सका मैं क्रोध को अपने, मैंने उसको पकड़ लिया
देना था आशीष ही मुझको, पर मन को पिता प्रेम ने जकड़ लिया’
ये पिता प्रेम था, जो बूढ़े के सर पे चढ़के आया था
इस पिता प्रेम के कारण उसने, बल से मूरत चटकाया था
ये पिता प्रेम था, जिसने उससे ये कर्म करवाया था
इस पिता प्रेम के कारण उसने, धर्म का ज्ञान गंवाया था
ये पिता प्रेम था, जिसने उसके अंतर मन को काट दिया
इस पिता प्रेम के कारण उसने, मूरत दो हिस्सों में बाँट दिया
पूरी सभा में सन्नाटा था, कोई कुछ भी बोल न पाता था
उस बूढ़े को रोते देख, मन विचलित होता जाता था
अंत में केशव बोले, ‘तातश्री! मुझे पूरा संज्ञान था
पिता प्रेम क्या कर सकता है, इस बात से मैं न अनजान था
युद्ध समाप्त हुआ तब मुझको, ये तुरंत समझ में आया था
तभी भीम के जैसा ही, एक वज्र मूरत बनवाया था
चिंता न करो तातश्री, आपने नहीं विगोदर मारा है
है जीवित और हष्ट-पुष्ट, यही खड़ा भीम हमारा है !’
केशव खड़े मुस्काते थे, उनको दर्द बूढ़े का ज्ञात था
और समझते थे वह की, धृतराष्ट्र क्यों इतना आघात था
केशव ने फिर इशारा दे, भीम को आगे बढ़ाया
और धृतराष्ट्र ने मांगी माफ़ी, और सबको गले लगाया
आशीष दिया उसने सबको, और सभा छोड़ के चल दिया
और केशव और पांडवो ने, उसके पिता प्रेम को नमन किया