Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Feb 2024 · 3 min read

पिता प्रेम

हस्तिनापुर लौटे पांडव, हुए विजयी वह आखिरकार
धर्मराज का तिलक था होना, गुंजी उनकी जय-जयकार
सभी पांडव अपने बड़ो का, आशीष लेने आये थे
सबने फिर माधव को देखा, वह संग अपने कुछ लाये थे
एक बड़ी वज्र की मूरत थी, उसकी चमक दूर से दिखती थी
और गौर से देखा सबने तो, कुछ भीम के जैसी दिखती थी
चकित थे पांडव आखिर केशव ये मूरत क्यों है लाये
इतने में बोले केशव, ‘चलो तातश्री से मिलके आये’
धृतराष्ट्र बैठे थे सिंघासन पे बोले, ‘तुमको विजय मुबारक हो
तुमने जीता मन है सबका, तुम सभी धर्म के कारक हो
एक बार गले लगा लूँ तुमको, फिर प्रस्थान करूँगा
और बहोत हुआ ये खून खराबा अब तुमसे न लडूंगा’
एक-एक करके बढ़ते पांडव, पाते उनका आशीष थे
नमन में अपने ज्येष्ठ पिता के, झुके सभी के शीश थे
आगे बढे जब भीम अचानक माधव ने उनको थाम लिया
वज्र की मूरत आगे बढ़ा दी, उन्होंने अक्ल का ये काम किया
ज्यों ही आलिंगन में उनके, वह वज्र की मूरत आयी
धृतराष्ट्र ने उसको कसके जकड़ा, अपनी शक्ति दिखाई
चटक गयी वह एक क्षण में, जो बनी वज्र की मूरत थी
अगले क्षण ही टूट गयी वो, जिसपे छपी भीम की सूरत थी
पांडव खड़े सब भय में थे, सन्नाटा सा छाया था
भीम को गले लगाते ही, धृतराष्ट्र को क्रोध भयानक आया था
भीम की सूरत पड़ी-पड़ी, उस वज्र मूरत से देख रही
क्या होता जो भीम ही होते, ये प्रश्न सभी पर फ़ेंक रही
तोड़ दिया उस मूरत को, फिर कलेजा धृतराष्ट्र का डोला
रोने लगा वह फूंट-फूंट के, और आखिर में ये बोला
‘क्षमा करो बच्चों मुझे, मैंने ये काम किया है
तुम्हरे एक भाई को मैंने, तुमसे छीन लिया है’
सोचा न था स्वप्न में भी, की मैं ऐसा काम करूँगा
सोचा यही था राज्य सौंप के, अब आराम करूँगा
पर जब गले लगाया भीम को तब, क्रोध अजब सा जागा
मन हुआ की चीर दूँ इसको, और करदूँ इसको आधा !
न रोक सका मैं क्रोध को अपने, मैंने उसको पकड़ लिया
देना था आशीष ही मुझको, पर मन को पिता प्रेम ने जकड़ लिया’
ये पिता प्रेम था, जो बूढ़े के सर पे चढ़के आया था
इस पिता प्रेम के कारण उसने, बल से मूरत चटकाया था
ये पिता प्रेम था, जिसने उससे ये कर्म करवाया था
इस पिता प्रेम के कारण उसने, धर्म का ज्ञान गंवाया था
ये पिता प्रेम था, जिसने उसके अंतर मन को काट दिया
इस पिता प्रेम के कारण उसने, मूरत दो हिस्सों में बाँट दिया
पूरी सभा में सन्नाटा था, कोई कुछ भी बोल न पाता था
उस बूढ़े को रोते देख, मन विचलित होता जाता था
अंत में केशव बोले, ‘तातश्री! मुझे पूरा संज्ञान था
पिता प्रेम क्या कर सकता है, इस बात से मैं न अनजान था
युद्ध समाप्त हुआ तब मुझको, ये तुरंत समझ में आया था
तभी भीम के जैसा ही, एक वज्र मूरत बनवाया था
चिंता न करो तातश्री, आपने नहीं विगोदर मारा है
है जीवित और हष्ट-पुष्ट, यही खड़ा भीम हमारा है !’
केशव खड़े मुस्काते थे, उनको दर्द बूढ़े का ज्ञात था
और समझते थे वह की, धृतराष्ट्र क्यों इतना आघात था
केशव ने फिर इशारा दे, भीम को आगे बढ़ाया
और धृतराष्ट्र ने मांगी माफ़ी, और सबको गले लगाया
आशीष दिया उसने सबको, और सभा छोड़ के चल दिया
और केशव और पांडवो ने, उसके पिता प्रेम को नमन किया

Language: Hindi
1 Like · 111 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ग़ज़ल _ रोज़ तन्हा सफ़र ही करती है ,
ग़ज़ल _ रोज़ तन्हा सफ़र ही करती है ,
Neelofar Khan
3941.💐 *पूर्णिका* 💐
3941.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
।।
।।
*प्रणय*
मेरे दो अनमोल रत्न
मेरे दो अनमोल रत्न
Ranjeet kumar patre
पहला कदम
पहला कदम
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
ब्राह्मण
ब्राह्मण
Sanjay ' शून्य'
संवेदनहीनता
संवेदनहीनता
संजीव शुक्ल 'सचिन'
ईमान
ईमान
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
ता थैया थैया थैया थैया,
ता थैया थैया थैया थैया,
Satish Srijan
कबूतर
कबूतर
Vedha Singh
कोई तंकीद
कोई तंकीद
Dr fauzia Naseem shad
पछतावा
पछतावा
Dipak Kumar "Girja"
गीत - जीवन मेरा भार लगे - मात्रा भार -16x14
गीत - जीवन मेरा भार लगे - मात्रा भार -16x14
Mahendra Narayan
कृष्ण की राधा बावरी
कृष्ण की राधा बावरी
Mangilal 713
खिलेंगे फूल राहों में
खिलेंगे फूल राहों में
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
चार लोगों के चक्कर में, खुद को ना ढालो|
चार लोगों के चक्कर में, खुद को ना ढालो|
Sakshi Singh
धीरे-धीरे ला रहा, रंग मेरा प्रयास ।
धीरे-धीरे ला रहा, रंग मेरा प्रयास ।
sushil sarna
नयी नवेली
नयी नवेली
Ritu Asooja
कैसे देखनी है...?!
कैसे देखनी है...?!
Srishty Bansal
जिस देश में लोग संत बनकर बलात्कार कर सकते है
जिस देश में लोग संत बनकर बलात्कार कर सकते है
शेखर सिंह
शहर में आग लगी है उन्हें मालूम ही नहीं
शहर में आग लगी है उन्हें मालूम ही नहीं
VINOD CHAUHAN
मजबूरी
मजबूरी
The_dk_poetry
इंसान की फ़ितरत भी अजीब है
इंसान की फ़ितरत भी अजीब है
Mamta Rani
किसी भी व्यक्ति के अंदर वैसे ही प्रतिभाओं का जन्म होता है जै
किसी भी व्यक्ति के अंदर वैसे ही प्रतिभाओं का जन्म होता है जै
Rj Anand Prajapati
मैं इश्क़ की बातें ना भी करूं फ़िर भी वो इश्क़ ही समझती है
मैं इश्क़ की बातें ना भी करूं फ़िर भी वो इश्क़ ही समझती है
Nilesh Premyogi
തിരക്ക്
തിരക്ക്
Heera S
कागज़ ए जिंदगी
कागज़ ए जिंदगी
Neeraj Agarwal
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
हौसलों कि उड़ान
हौसलों कि उड़ान
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
भवप्रीता भवानी अरज सुनियौ...
भवप्रीता भवानी अरज सुनियौ...
निरुपमा
Loading...