पिता पुत्री मार्मिक रिश्ता
पिता-सुता संबंध बहुत है नाजुक
जब बिछुडें,लगे चोट सम चाबुक
खून का खून से होता यह रिश्ता
कभी नहीं बाजारों में यह मिलता
दिल से जुड़े होते हैं मर्म मनोभाव
तराजू में ना होता तोल मोल भाव
उर से सीधे जुड़े होते रिश्ते के तार
जब कभी टूट जाए,दें मार्मिक मार
पिता की मुट्ठी में जान है आ जाती
जब कभी बेटी है बिछड़ है जाती
पिता का होती हैं स्वाभिमान बेटी
सिर की पगड़ी घर की लाज बेटी
ना हो यदि तनया सिर पिता साया
वह होती अभाग्नि ,नहीं छत्रसाया
जिस पिता को बख्शी नहीं तनूजा
वह घर -पिता अधूरा बिन तनूजा
निज पसीना बेच पालता नन्दिनी
सर्दी, गर्मी, नर्मी सहता वह प्रसवी
किसी भीड़,मेले में हाथ जाए छूट
पिता-पुत्री फूलें पैर स्वेद जाए छूट
गम ए जुदाई देती बहुत तकलीफ
काम ना दवा दारू,बढे तकलीफ
पाल पोस कर बड़ी हो जाती बेटी
दहलीज़ पार करने को आतुर बेटी
पिता का फट जाता है तब कलेजा
पुत्री घर छोड़े रह जाए वो अकेला
उतार दे थके हारे पिता की थकान
बिखेरती मुख पर मंद मंद मुस्कान
पिता की परी हो जाती युवा जवान
पिता मुख पर चिंता गायब मुस्कान
तन मन धन वार सौंपे किसी झोली
प्यारी बिटिया को चढा देता डोली
रह जाता है शरीर दिल जाता साथ
बेटी की जुदाई सताती है दिन रात
रहे सदैव चिंता है बेटी किस हाल
फुल सी नाजुक बेटी ना हो बेहाल
जब तक तनबदन में चलते हैं प्राण
पिता सदैव पुत्री हेतु रहता परेशान
खुदा के घर से बनता है यह रिश्ता
पिता-पुत्री खुश,सलामत रहे रिश्ता
सुखविंद्र सिंह मनसीरत