पिता, पिता बने आकाश
पिता
न बदले थे न बदलोगे,जमाना गर बदल जाए।
रहे जैसे रहे वैसे,जमाना भर बदल जाए।
हिमालय सी वो ऊंचाई,वहीं सागर सी गहराई।
हृदय में प्रेम की ऊष्मा, कहां थी थाह भी पाई।
स्वयं दिन-रात खट-खट कर, हमारा सुख सृजन करना।
जमाने की तपिश में सुलग कर,
भी मेह सा झरना।
तुम्हारे परस का संबल,वो सर पर हाथ रख देना।
बड़ी मुश्किल घड़ी में भी, तुम्हारा साथ वह देना।
कभी उंगली पकड़ तुमने,हमें चलना सिखाया था।
तुम्हीं ने पुस्तकों के साथ में, परिचय कराया था।
तुम्हीं ने प्रेरणा उत्साह की, दौलत अता की थी।
तुम्ही ने कंटकों की राह भी, सीधी सरल की थी।
गलत करने पे नाराज़ी, कड़ा रक्खा वो अनुशासन।
सिखाया है उसी ने आज, अपने मन पर अनुशासन।
गलत को हम गलत माने,सही का साथ हम दे दें।
दिया तुमने वो साहस था, बुराई से भी टक्कर लें।
हैं तुमसे ही जनम जीवन,सभी संस्कार पाए हैं।
पिता तुम से उऋण संसार में, कोई हो भी पाए हैं?
रहे जब तक सदा सर पर, तनी छतरी सरीखे थे।
गए, संसार से फिर भी, दिलों से जा नहीं पाए।
इंदु पाराशर. इंदौर.
फो.नं. 94250 62688
पिता बने आकाश
पिता सदा सर्वोच्च हैं परमपिता भगवान।
घर के संसाधन रहे, रहता घर का मान।
अनुशासन के सूत्र की, पिता थामते डोर।
देते बेटे को सदा,जीवन सत्व निचोड़।
बिटिया के हीरो सदा, वह बिटिया के मित्र।
बिटिया के मन में बसे, सदा पिता का चित्र।
मां की बिंदिया चूड़ियां, मां का मंगलसूत्र।
पापा के ही वास्ते, जीवन का हर सूत्र।
पापा घर की छत बने, हैं अभेद्य दीवार।
पापा के कारण बना, घर सुंदर संसार।
मां यदि घर की धुरी है, पिता बने आकाश।
बच्चों से घर में रहे, हर दम भरा उजास।
इंदु पाराशर. इंदौर.
मो.नं. 94250 62658