पिता पर गीत
मेरे अंदर जो बहती है, उस नदिया की धार पिता
भूल नहीं सकती जीवन भर, मेरा पहला प्यार पिता
मेरी इच्छाओं के आगे,वे फौरन झुक जाते थे
मगर कभी मेरी आँखों में, आँसू देख न पाते थे
मेरे सारे ही सपनों को, देते थे आकार पिता
भूल नहीं सकती जीवन भर, मेरा पहला प्यार पिता
मेंरे जीवन की उलझन को, हँसते-हँसते सुलझाया
और उन्होंने बढ़ा हौसला, आगे बढ़ना सिखलाया
बनी इमारत जो मैं ऊँची, उसके हैं आधार पिता
भूल नहीं सकती जीवन भ,र मेरा पहला प्यार पिता
स्वयं तपे सूरज जैसे पर, मुझे छाँव दी बन बादल
होने नहीं दिया इक क्षण भी, मुझको आँखों से ओझल
मगर बिठाया डोली में जब,दिखे विवश लाचार पिता
भूल नहीं सकती जीवन भर, मेरा पहला प्यार पिता
आज नहीं जीवित होकर भी, मेरे अंदर गुंजित हैं
उनके आदर्शों पर चलकर,मेरे सब पल सुरभित हैं
सदा रहे हैं और रहेंगे ,मेरा तो संसार पिता
भूल नहीं सकती जीवन भर, मेरा पहला प्यार पिता
30-10-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद