पिता नींव परिवार की
1.
पिता न होते विश्व में , कहँ सन्तति अस्तित्व ।
उनसे पाए जीन्स से , सन्तति का व्यक्तित्व ।।
2.
पिता नींव परिवार की , सन्तति हित वरदान ।
पिता गेह का मान है , सन्तति भविष्य गान ।।
3.
भरण तथा रक्षण विनय , पिता कर्म का सार ।
इस निमित्त संघर्ष से , रखे द्वयन परिवार ।।
4.
खुद की फिक्र न की कभी , सुख पाए सन्तान ।
त्याग ,लगन संघर्ष है , असल पिता पहचान ।।
5.
कठोरता बाहर अधिक , भीतर कोमल फूल ।
बच्चों का हित साधने कृत्य करे अनुकूल ।।
6.
सख्त नारियल से लगें , लेकिन मीठा नीर ।
पिता सदा हरते रहें , घर बाहर की पीर ।।
7.
तीज त्योहार मात के , बने पिता पहचान ।
उनके साए बिन रहे , सब कुछ ही सुनसान ।।
8.
दमके सुहाग मात का , भरा माँग सिंदूर ।
जीवित पिता प्रताप से , सहमे नहीं गुरूर ।।
9.
ओत प्रोत संघर्ष से , भरे पिता के प्राण ।
कर्म सतत ऐसे करें , हो कुटुंब कल्याण ।।
10.
चूल्हे पर जो कुछ पके , सब कुछ पिता प्रताप ।
पेट भरा परिवार का , ओपीता परिश्रम छाप ।।
11.
मिले पिता आशीष जब , हो सन्तति कल्याण ।
ज्ञानोदय व विकास से , मिलता जग में त्राण ।।
12.
पिता तरक्की की डगर , पिता सफलता नीर ।
गुनिया पिता विकास की , मिटे पुत्र की पीर ।।
13.
घर के कष्टों के निमित , पिता बनें खुद ढाल ।
पिता करें करतब वही , घर भर होय निहाल ।।
14.
पिता सन्तान कीर्ति से , जब पाए सुख बोध ।
जन्म सार्थक हो उनका , यही लोक की शोध ।।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी (म. प्र . ) 451 551