पिता दिवस विशेष, भावना है अभी भी शेष
पिता पर लिखने को तो मैं बहुत लिखा
बहुत सारे लोगों ने लिखा
पर ये मसला नहीं कि किसने क्या लिखा ?
कितना लिखा ? कहां तक लिखा ?
असल मसला तो ये है कि पिता को किसने पूरा लिखा ?
ऐसी कलम को चाहिए परम पिता के असीम अनुकंपा की कृपा
मैंने खुद को पढ़ा और औरों को भी देखा
इसके बावजूद कोई अभी तक नहीं खींच पाया पिता की सम्पूर्ण रेखा
किसी कविता में पिता पूरा नहीं समाया
कोई सिर तो कोई पैर कोई हाथ को ही स्पर्श कर पाया
किसी के हिस्से में पूरा शरीर नहीं आया
सबने अपने-अपने तरीके से पिता को है दिखाया
मेरा सवाल ये है कि क्या पिता कविता का पात्र है? या कविता का मुख्य किरदार है?
या हमारे आचरण में पिता के सेवा की दरकार है
हर तरफ ये शोर है कि आज पिता-दिवस का ज़ोर है
पिता के लिए”एक दिन”रखना शायद हमारी कोशिश बहुत कमजोर है
हमें सोचना चाहिए फिर से एक बार
आपने सुना होगा जिंदगी के दिन हैं चार
पिता के लिए”एक दिन”किया है आपने तैयार
तो क्या तीन दिन हो जायेंगे बस बेकार
इसी बात से आपको कराना था सरोकार
बाकी आप बुद्धिजीवी हैं आपका अपना स्वतंत्र विचार
मेरी तरफ से यही है आज का ताजा समाचार
कविता से बाहर की दुनिया में जीवित एक पिता है
पिता ही दुनिया है क्या आपको ये पता है ?
नि: संदेह पिता-दिवस खूब मनायें
पर अपने अस्तित्व को न गंवाएं
365 दिन पिता रूपी अलंकार को सजायें
आओ अपने जीवन को धन्य बनायें
चलता हूं अपना और अपनो का खयाल रखें
फिर आऊंगा एक नयी विचारधारा के साथ
तब तक के लिए जय हिन्द,जय पिताजी
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.