पिता दशरथ का संताप
जाने क्या नियति में था
लक्ष्य भेदन जो मै चला
एक क्षण की भूल मेरी
आज फलित हो रहा श्राप है
पिता दशरथ का ये संताप है
कितने ठोकर कितने दुख पाएगा
राज दुलारा आंख का तारा जो वन जाएगा
पुत्र संग तो बहू भी कष्ट पाएगी
वो सुकोमल बिटिया वन में कैसे जी पाएगी
मेरे वचनों के लिए निर्दोष दंड पाएंगे
ये तो महापाप है
पिता दशरथ का ये संताप है
भरत का राज तिलक सहर्ष दे देता
अयुद्धया की सारी संपदा क्षण भर में त्याग देता
पर रानी ने भी ये क्या मांगा है
वचन नही प्राण मांगा है
अपने मन को धीरज कैसे दुं
वन गमन का आदेश कैसे दुं
अब भाग्य में बस विलाप है
पिता दशरथ का ये संताप है