पिता जी
पिता जी
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ऐ पिता जी
ओ पिता जी
क्यों रूठे से
हो पिता जी?
इधर देखते
कभी उधर देखते
रहते क्यों अनमने
पिता जी !
ऐ पिता जी
ओ पिता जी
बैठे क्यों चुपचाप
पिता जी
लगते बहुत
उदास पिता जी
देखता तुमको
जब जब मैं
क्यों फफक
रो रहे पिता जी ?
ऐ पिता जी
ओ पिता जी
दिखते क्यों
लाचार पिता जी
लगता है
पगड़ी हो गई ढीली
कस लो
फिर एकबार
पिता जी
ऐ पिता जी
ओ पिताजी
चलो तुम्हारे
कंधे दबा दूँ
झुक गये
इतना बोझ
उठा के
थक गये हो
तुम चलते चलते
अब तो बैठो
कुछ सुस्ता लो
दम तो ले लो
मैं अब हूँ
साथ पिता जी
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राजेश’ललित’