पिता घर की पहचान
आंधी आए आए तूफान,
पिता हैं वट वृक्ष की छांव।
धीर-गंभीर खड़े चट्टान बन,
देते सहारा शाखा फैलाकर।।
अन्तर्मन में अति कोलाहल,
रहते अब्धि-सा शांत हरदम।
भाल मार्तण्ड-सा प्रबल,
चित्त मयकं – सा शीतल।।
रखते सदा अनुशासन,
घर में उनका प्रशासन।
नही रखा कभी बंदिश,
पैरों में न बांधी जंजीर।।
संस्कारों की वह पाठशाला,
वह पक्की ईंट की दीवार,
मां का वह अभिमान,
कुटुंब का स्वभिमान।।
निराशा में भी आशा,
वह प्यार की परिभाषा।
अप्रदर्शित उनका प्यार,
जैसे अनंत आकाश।।
बच्चों का वह खिलौना,
मीठे सपनो का बिछौना।।
बन जाए काठी का घोड़ा,
सुनाएं कहानी सलोना।।
परिवार का वह संबल,
प्यार उनका जैसे चंदन।
बिन उनके ना कोई आस,
वही आखिरी विश्वास।।
बच्चों की वह हिम्मत,
वही खुला आसमान।
पिता घर की पहचान,बिन
उनके ना जीवन आसान।।
प्रियंका त्रिपाठी’पांडेय’
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
स्वरचित एवं मौलिक