पिता के जाने के बाद स्मृति में
*अब किससे कहूं अपनी, दुनियां के झमेले में।
रोता हूं मैं अब तुमको , कर याद अकेले में।
तुम चले गए जग से ,तन्हाई देकर के।
रुलाई देकर के हंसी चेहरे की लेकर के ,
जब देखता हूं तुमको , फ्रेम में फोटो की।
तो रोकूं भला कैसे ,मैं कम्पन ओटों की।
बस सुबक सुबक करता दुनियां के मेले में।
अब किससे कहूं अपनी दुनियां के झमेले में।
मां की भी आंखों में ,लाचारी दिखती है।
ओठो को सीकर के ,बस शून्य निरखती है।
कभी हंस कर रोती है ,कभी रोकर हंसती है।
बस याद तुम्हे करके ,वो हर पल मरती है।
बस दर्शक भर शामिल है ,जीवन रुपि खेले में।
अब किससे कहूं अपनी दुनियां के झमेले में।
छोटा तो छोटा है , तुम्हें था जो बड़ा प्यारा ।
अब कौन लडाए उसे , देकर के प्यार सारा।
बहिनों की तो मत पूछो , अब भूल गई रस्ता।
अब आए तो भला कैसे ,यहां कोई नही दिखता।
सब छूट गया पीछे , इस समय के रैले में।
अब किससे कहूं अपनी ………..।
बहुएं भी तुम्हारी पिता ,दस्तूर निभाती है।
कर दान पुण्य थोड़ा फिर खाना खाती है।
दोनो लाडली पोती भी ,मिस तुम्हे करती है।
पोते जो है दोनो उनकी आंखे झरती है।
दोहित्र दोहिती भी , झूले यादों के झूले में।
अब किससे कहूं अपनी……*
कलम घिसाई