पिता की व्यथा
ख़ूबसूरत हसीन जवान था
लोगों में बङा नाम था
आदर्श पुत्र, भाई और पिता
परिवार के लिए जीता और मरता
उम्र के उस पड़ाव पर
जब उम्र महसूस होने लगे
जर्जर कृश्काय शरीर को घसीट
रोज़ खा रहा है धक्के
दवाईयों की बैसाखी पर खड़ा होता
नकारा पुत्र के सपनो का बोझ ढोता
बस उम्मीद ही इकलौती साथिन है
जो हर बार तसल्ली दे जाती है
मुश्किल वक्त कट जाएगा
बेटा सुधर जाएगा
झूठी उम्मीद पर ही
आज तक प्राण अटके है
और उस वक्त की बाट जोहता
हर रोज खा रहा है धक्के
जर्जर कृश्काय शरीर को घसीट
नकारा पुत्र के सपनो का बोझ ढोता
चित्रा बिष्ट