पिता की परवाह!
खामोशी पढ़कर चेहरे की,
आईने की तकदीर है बदले,
कंधों में लेकर के बोझ,
फिर भी रहते हैं हंँसते,
पिता है वो उफ भी नहीं करते,
संतानों की परवाह है करते ।..(१)
नभ से बढ़कर धैर्य उन्हीं में ,
ख्वाहिशें सुन-सुन कर भी नहीं थकते ,
दुख संचित कर सुख है देते ,
खून पसीना एक हैं करते ,
फिर भी जीवन है जीते ,
पिता है वो उफ भी नहीं करते,
संतानों की परवाह है करते ।..(२)
उम्मीदों से ह्रदय है धड़कता,
खुद के कष्टों को जाहिर नहीं करते ,
अपनी तमन्नाओं पर बंदिश है रखते ,
असभ्य होने पर भी कृपा ही करते ,
फिर भी आशीर्वाद ही देते ,
पिता है वो उफ भी नहीं करते,
संतानों की परवाह है करते ।..(३)
धूप में छांव वह बनते ,
थकते तुम पैर वह बनते ,
सागर से गहरा घाव हैं सहते,
संघर्ष अथाह जीवन भर करते ,
फिर भी सम्मान से है जीते ,
पिता है वो उफ भी नहीं करते,
संतानों की परवाह है करते ।..(४)
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रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश मौदहा हमीरपुर ।