पिता की दुनिया
पिता की दुनिया
नंगे सूखे पेड़ से
हरियाली की बातें
अच्छी नहीं लगतीं
मुझे इस दौर की बातें
अच्छी नहीं लगतीं।
इस छोटी दुनिया में
कई अपनी दुनिया हैं
सोता हूँ, रात को तो
दिनभर की बतियाँ हैं
हूँ ऐसा वृक्ष मैं जिसके
सर सर पत्ते हिलते हैं
टूट कर गिर न जाए कोई
कंधे आपस में मिलते हैं
हर कमरे में सबकी
अपनी ही दहलीज़ है
वक़्त का तकाजा कहें
यह मेरी तहज़ीब है।।
सूर्य हूँ न….!!
रोशनी सब लेते हैं
देखता कोई नहीं…
एक पिता की दुनिया में
सारा जहाँ होता है
मगर उससे पूछो कभी
वह कहाँ होता है।।
सूर्यकान्त