ग़ज़ल
आज की हासिल
ग़ज़ल
मैं तुम्हें लब पर सजाना चाहता हूँ
बाँसुरी तुमको बनाना चाहता हूँ
छोड़कर मैं ये जहां सँग में तुम्हारे
इक अलग दुनिया बसाना चाहता हूँ
शाम-ए-गम इस ज़िन्दगी की साकिया मैं
तेरे कूचे में बिताना चाहता हूँ
खोल दे तू सागर-ए-मीना ऐ साक़ी
आज पीकर लड़खड़ाना चाहता हूँ
लोग क़तरा क़तरा पीते हैं मगर मैं
मय के सागर में नहाना चाहता हूँ
आज पीने से मुझे रोको न कोई
उसका मैं हर ग़म भुलाना चाहता हूँ
बाद मय्यत के करें सब याद प्रीतम
इस तरह दुनिया से जाना चाहता हूँ
प्रीतम श्रावस्तवी