पिता की अस्थिया
रूह कॉप रही थी, पिता की अस्थिया समेटते-समेटते,
पल भर में बेसाया हो गए थे. आसू पोछते-पोछते,
आस्तीन के सापों से बचाया,माँ ने अपने आचल में समेटते-समेटते,
दुनिया की तपिस को एक पल में समझा गए पिता, चिता में जलते-जलते
उमेन्द्र कुमार
रूह कॉप रही थी, पिता की अस्थिया समेटते-समेटते,
पल भर में बेसाया हो गए थे. आसू पोछते-पोछते,
आस्तीन के सापों से बचाया,माँ ने अपने आचल में समेटते-समेटते,
दुनिया की तपिस को एक पल में समझा गए पिता, चिता में जलते-जलते
उमेन्द्र कुमार